रेल्वे दावा

    लाइफ सेविंग आर्गेनाइजेशन की स्थापना का मुख्य उद्देश्य भारत में प्रतिवर्ष लगभग 40,3116 चार लाख तीन हजार एक सौ सोलह से अधिक हो रही रेल व सड़क दुर्घटनाओं को रोकने के लिए भारत सरकार के निर्देशानुसार जनसामान्य को अभियान चलाकर जागरूक करना, सड़क व रेल दुर्घटना में क्षतिग्रस्त लोगों को चिकित्सकीय सहायता, आर्थिक सहायता, विधिक सहायता उपलब्ध कराना तथा दुर्घटना में मृत व्यक्तियों के पीड़ित परिवारों को एंबुलेंस सहायता, आर्थिक सहायता और विधिक सहायता उपलब्ध कराना है।  

    हर साल रेल हादसों में कई लोग अपनी जान गंवा देते हैं। कभी-कभी यह उनकी गलती के कारण होता है, रेलवे प्रशासन के खिलाफ दावों का त्वरित निपटान प्रदान करने के लिए रेलवे दावा न्यायाधिकरण अधिनियम, 1987 लागू किया गया था।

    यद्पि रेलवे प्रशासन ने माल आदि भेजने वाले/प्रेषक को मुआवजा देने और जानमाल के नुकसान के लिए भी मुआवजा देने का एक तरीका बनाया, फिर भी लोग अक्सर संतुष्ट नहीं होते थे और वे अदालतों में चले जाते थे, जहां दावों पर निर्णय लेने में बहुत लंबा समय लगता था और मुकदमेबाजी लंबी हो जाती थी। अनिश्चित अवधि इसलिए, दावों के जल्द से जल्द निपटान में तेजी लाने की आवश्यकता महसूस की गई, जिसके परिणामस्वरूप दावा न्यायाधिकरण की स्थापना हुई, जो विशेष रूप से ऐसे दावों से निपटेगा और उनका तेजी से निपटान करेगा। परिणामस्वरूप, न्यायालयों का बोझ कम हुआ और त्वरित राहत उपलब्ध हुई। यहां तक ​​कि किराए और माल-भाड़े के रिफंड को भी ट्रिब्यूनल के दायरे में लाया गया।

    आरसीटी अधिनियम रेलवे द्वारा ले जाने के लिए सौंपे गए जानवरों या सामानों की हानि, विनाश, क्षति, गिरावट या गैर-डिलीवरी के लिए रेलवे प्रशासन के खिलाफ दावों की जांच और निर्धारण के लिए रेलवे दावा न्यायाधिकरण की स्थापना का प्रावधान करता है।

    यात्री का रिफंडकिराया या माल ढुलाई या रेलवे दुर्घटनाओं या अप्रिय घटनाओं के परिणामस्वरूप होने वाली यात्रियों की मृत्यु या चोट के लिए मुआवजे और उससे जुड़े या उसके आनुषंगिक मामलों के लिए।

    अधिनियम की योजना से पता चलता है कि इसने ट्रिब्यूनल की स्थापना, इसकी बेंचों, अधिकारियों और कर्मचारियों, उनके कार्यकाल, पात्रता, न्यायक्षेत्र, शक्तियों और ट्रिब्यूनल के अधिकार, इसकी प्रक्रिया, इसके आदेशों और अपीलों के निष्पादन के लिए प्रावधान किए हैं। इस प्रकार यह अधिनियम एक स्व-निहित अधिनियम है, जिसने बड़े पैमाने पर जनता की समस्याओं का समाधान किया है।

    लाइफ सेविंग आर्गेनाइजेशन द्वारा भारत में रेल दुर्घटना पीड़ितों को न्याय दिलाने के उद्देश्य से सम्पूर्ण भारत के जिलों व तहसील स्तर पर ऐसे स्वंय सेवक का समूह बनाया गया  है जो की स्वयं किसी न किसी घटना से पीड़ित रहे है अथवा उन्होंने उस पीड़ा को महसूस किया है।

    लाइफ सेविंग आर्गेनाइजेशन के समाजसेवी स्वंयसेवक की निरंतर मेहनत और अथक प्रयासों से ही लाइफ सेविंग आर्गेनाइजेशन द्वारा अनगिनत दुर्घटनाओं में पीड़ितों को आवश्यक एम्बुलेंस सहायता, चिकित्सा सहायता और विधिक सहायता उपलब्ध करा पायी है। एवं उपरोक्त सामाजिक कृत्य क्रम का ही परिणाम है कि लाइफ सेविंग आर्गेनाइजेशन के पास विधिक सहायता हेतु निरंतर रेल दुर्घटना प्रकरणों की संख्या में बृद्धि हुई है।

    भारत के विभिन्न राज्यों के अन्य समाज सेवी स्वयंसेवकों तथा संगठनों द्वारा स्वेक्षा से अपने क्षेत्रो में घटित रेल दुर्घटना में पीड़ित व पीड़ित के परिवार को लाइफ सेविंग आर्गेनाइजेशन की मदद से निरंतर विधिक सहायता उपलब्ध कराना सुनिश्चित किया जा रहा है।

    भारत में पुरातन काल से ही न्याय व्यवस्था को सर्वोपरि माना गया है, हमेशा से ही न्यायाधीश को ईश्वर का दर्जा प्राप्त हुआ है। किन्तु जैसे पुरातन काल में न्याय व्यवस्था की पहली सीढ़ी में कार्यरत कुछ लालची कर्मचारी बेईमान और घूसखोर होते थे, उसी तरह वर्तमान में भी प्रकरण का अनुसंधान करने वाले कुछ जांच अधिकारियों,कर्मचारियों / पुलिस कर्मचारियों अथवा अनुसन्धाकर्ताओं ने जो कि अपने व्यक्तिगत हित एवं दुर्भावना तथा अहंकारी स्वभाव को साधने के लिए न्याय सिद्धांत पर कलंक लगाते हैं। उक्त कलंकित अनुसंधान में बुध्दिमान,अनुभवी और वरिष्ठ अधिवक्ताओं द्वारा न्यायाधीशों की मदद से ही न्यायपालिका द्वारा न्याय की गरिमा को प्रतिपादित किया जाता है।

    लाइफ सेविंग आर्गेनाइजेशन द्वारा भारत में रेल दुर्घटना पीड़ितों को न्याय दिलाने के उद्देश्य से सम्पूर्ण भारत के अधिकांश रेलवे क्लेम ट्रिब्यूनल में सर्वश्रेष्ठ अधिवक्ताओं का पैनल बनाया है। उक्त वरिष्ठ अनुभवी अधिवक्ताओ के मार्गदर्शन उपरांत रेल दुर्घटना पीड़ितों को रेलवे क्लेम ट्रिब्यूनल में अतिशीघ्र न्याय दिलाने का प्रयास करना सुनिश्चित किया जाता है।

    विद्वान अधिवक्ताओं को प्रकरण में पैरवी शुल्क का भुगतान लाइफ सेविंग आर्गेनाइजेशन को निरंतर प्राप्त दान स्वरूप धनराशि से किया जाता है, कभी-कभी पीड़ित या अन्य समाज सेवी स्वयंसेवकों तथा संगठनों द्वारा भी न्यायिक प्रक्रिया में प्राप्त न्यायिक निर्णय उपरांत प्राप्त मुआवजा राशि में से लाइफ सेविंग आर्गेनाइजेशन को अधिवक्ता शुल्क का भुगतान किया जाता है, जिससे लाइफ सेविंग आर्गेनाइजेशन निरंतर समाज सेवा के रूप में मजबूती से पैर पसार रहा है।

    लाइफ सेविंग आर्गेनाइजेशन से किसी भी प्रकार की मदद प्राप्त करने के लिए वेबसाइट में विभिन्न प्रकार के प्रकरणों के लिए चुनाव सहित शिकायतदर्ज कर शिकायत की स्थिति का अवलोकन भी कर सकते है।

    लाइफ सेविंग आर्गेनाइजेशन के स्वंयसेवक जो कि स्वयं कभी पीड़ित रहे है या फिर उनके परिवार से कोई पीड़ित रहा है, सम्मानीय पैनल अधिवक्ता आदि सभी मिल कर एक नए समाज का निर्माण करने में अपना विशिष्ट योगदान दे रहे है।

    लाइफ सेविंग आर्गेनाइजेशन के स्वंय सेवक और पैनल अधिवक्ता निरंतर समाज सुधार,विकास तथा उत्थान के लिए सम्पूर्ण भारत में कार्यरत एवं वैश्विक स्तर पर क्रियान्वयन हेतु प्रयासरत है। उपरोक्त व्यवस्था चरणबद्ध तरीके से लाइफ सेविंग आर्गेनाइजेशन वेबसाइट देखने पर स्पष्ट समझ आ सकती है।

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